Saturday, December 15, 2012

राधे राधे

"तुम्हे जब देखा कृष्णमय मेरे मन मे कृष्ण का जन्म हुआ,
मदिर मै रोज जाता,श्री कृष्ण के दर्शन करता,
श्री कृष्ण की स्तुती करता,श्री कृष्ण को महसुस करता,
हर वर्ष जन्माष्टमी आती,खुशिया एवम हर्षोल्लास लाती,
दही-मक्खन के मट्के बधते,मट्के फुटते,दही-मक्खन बटते,
श्री कृष्ण का जन्म होता,भजन-कीर्तन होता,मन भाव्-विभोर होता,
मथुरा-वृदावन्-बरसाना,गोकुल्,
विचरा मै मदिर्-मदिर जाना ना कृष्ण का असल मोल,
जिस दिन मैने

तुम्हे देखा मदिर मे श्री कृष्ण की भक्ति मे डुबे,
दोनो हाथ जोडे,कृष्ण मे डुबी,
शान्त चेहरा,सिर पे दुपट्टा,
आन्खो मे कृष्ण्,होठो पे राधा-कृष्ण्,
मन मे श्रद्धा,दिल मे भक्ति,
आस्था और विश्वास का सगम लगी,
उस दिन मैने जाना कृष्ण का असल मोल,
मनमोहन को निहारती तुम मनमोहनी लगी,
श्रद्धा से जुडे तुम्हारे हाथ ,और हो गई मुझ पर कृपा,
कन्हैया की बासुरी से निकली तुम कोई मधुर धुन लगी,
तुम्हारे होठो से निकले राधा-कृष्ण की स्तुती
मेरे रोम रोम को श्री कृष्ण का अहसास करा गये,
तुम्हारे कृष्ण प्रेम से मेरी भक्ति को एक नयी परिभाषा मिली,
मन के तार श्री कृष्ण से जुडे,मेरे जन्म को एक नया आधार मिला,
तुम्हारी कृष्ण्-भक्ति देख,मेरा कृष्ण से सवाद हुआ,
अब कृष्ण की भक्ति मेरा धर्म है,
कृष्ण नही तो कुछ भी नही,
अब तो जहा भी हु जैसा भी हु कृष्णमय् हु,
तुम हो तो कृष्ण हो, मै हु तो कृष्ण हु,
मन मे कृष्ण्,जुबान मे कृष्ण्,
सुबह मे कृष्ण्,शाम मे कृष्ण्,
जल मे कृष्ण्,धरा मे कृष्ण्,
गगन मे कृष्ण्,ब्र्म्हाड मे कृष्ण्,
कण्-कण मे श्री कृष्ण्, हर तरफ् कृष्ण ही कृष्ण है।
तुम्हे जब देखा कृष्णमय,मेरे मन मे कृष्ण का जन्म हुआ,"

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